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चुनाव / नीलोत्पल
Kavita Kosh से
बहुत सारे सच
और बहुत सारे झूठ सुनने के बाद
इतना तय हुआ
दुनिया दोनों के साथ चलेगी
जिसे आपत्ति है
वह दर्ज़ करवाए
मेरा अपना कुछ नहीं था
मुझे तो बस चुनना था
मैं क्या चुना सकता था?
मैं किसलिए चुनता?
लोगों के मन अपराध बोध से भरे थे
वे डरे सहमे थे
वे अपने ही खिलाफ थे
जब उनके निकट गया और जाना
वे सच के लिए झूठ बोल रहे थे
झूठ के लिए सच
वे चीज़ों को बचा रहे थे
वे अंतहीन बहस में थे
मुझे सच चुनना था
लेकिन झूठ की अनिवार्यता के साथ