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चुपचाप / अज्ञेय
Kavita Kosh से
चुप-चाप चुप-चाप
झरने का स्वर
हम में भर जाए,
चुप-चाप चुप-चाप
शरद की चाँदनी
झील की लहरों पे तिर आए,
चुप-चाप चुप-चाप
जीवन का रहस्य,
जो कहा न जाए, हमारी
ठहरी आँखों में गहराए,
चुप-चाप चुप-चाप
हम पुलकित विराट् में डूबे—
पर विराट् हम में मिल जाए—
चुप-चाप चुप-चाऽऽप...