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चुप्प के बादल विस्थापित होंगे एकदिन / अरविन्द श्रीवास्तव
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तुम्हारी ख़ामोशी को ईश्वर ने अस्वीकार कर दिया है
वे किसी नियति को म्लान होते नहीं देख सकते
मार्च और अप्रैल में चाँद धरती के करीब होगा
इस उम्मीद को भी उसने खारिज़ कर दिया है
मेरी कठोर तपस्या पर मुझे भरोसा है
एक उद्दीप्त आत्मा तुम्हारे आसपास मडराती है
यादों की आँच में चटक रहे हैं सपने
एकदिन चुप्प के बादल विस्थापित होंगे
हमें मालूम नहीं
एक पंगु अभिव्यक्ति के सिवाय
और क्या बचा है
इस किराए के घर में !