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चुराया गया ईश्वर / एम० के० मधु
Kavita Kosh से
चुपके से चोरी से
मैं
गठरी में मोटरी में
ईश्वर को लपेटकर
ले आया हूं अपने घर
मच गया होगा
पंडित के घर में हाहाकार
जब उसने देखा होगा
अपनी खुली अलमारी के
टूटे लॉकर से
लापता ईश्वर
और पूरे शहर में
मचा दिया होगा तूफ़ान
ढूंढ-ढूंढ कर
हो गया होगा परेशान
गली-गली में
सड़क-सड़क में
महलों के कंगूरे में
मंदिरों के गुंबदों में
कि कहां दुबक गया है
उसका बेदर्द
चीख-चीख कर वह
पुकारता रहा होगा
अपना भगवान
बहुत सहेज कर
बहुत छिपाकर
रखा था उसने उसे
पर मुझ चोर को लग गई थी गंध
चूंकि मैं दबता जा रहा था
अपने ऊपर बढ़ रहे
पाप के बोझ से
और मुझे सख़्त ज़रूरत थी
एक अदद ईश्वर की
जो मेरे इस बोझ को कम कर दे।