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चूहे निराश नहीं करते / सुधीर सक्सेना

Kavita Kosh से
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वे कुछ नहीं करते

बस मानचित्र पर यहाँ-वहाँ

छोड़ देते हैं चूहे


इसके बाद वे चले जाते हैं 'वीकएंड' पर

कभी फ़्लोरिडा तो कभी ग्रेनाडा

और इत्मीनान से देखते हैं

सिगार के कश, केंटुकी चिकन और वाईन के बीच

चूहों का खेल


चूहे उन्हें कभी निराश नहीं करते

वे कभी कुतरते हैं भूगोल,

कभी इतिहास,

कभी भाषा, तो कभी वेशभूषा

कबड्डी का मैदान कुतरकर वे कभी खेलते हैं गोल्फ़

कभी-कभार शगल के लिए पिंग-पांग ।


चूहे क्रेमलिन में मचाते हैं हड़बोंग

तो वे खोलते हैं शैम्पेन

और इन्हें अचानक नज़र आने लगती है

हर ब्लान्ड में एक अदद मर्लिन मनरो ।


कभी-कभार मारे भी जाते हैं चूहे

कभी हनोई में अप्रत्याशित

तो कभी थ्येन आन मन चौक पर

ऎसे में चूहे की नस्ल सुधारने के अभियान में

भिड़ जाते हैं वे प्रयोगशाला में ।

चूहों पर फ़ख्र है उन्हें

और चूहों ने भी बख़्शी हैं उन्हें सल्तनतें,

मुहैया किए हैं उन्हें सेहत के जाम

उनकी मेमों के गाल में चेरी की चमक,


यही चूहे मेक्सिको में कुतरते हैं नोट,

इथियोपिया में रोटी,

पटाया और मनीला में ज़िस्म ।

हिन्दुस्तान में यही भकोसते हैं रामदाना

और लेड़ियाँ करते हैं सोयाबीन की

यही चूहे आसेतु हिमायल तैयार करते हैं

मैकाले की खेप,

तीसरी दुनिया में खड़ी फसल को

वे ओलों से नहीं,

मारते हैं डिब्बाबन्द चूहों से ।

यही चूहे कभी कुतरते हैं नींद

कभी सपने, तो कभी हर लेते हैं चैन ।


कभी-कभी वे कुतर डालते हैं ख़यालों की खाल,

जब मचती है कहीं बहुत ज़्यादा हाय-तौबा

और छिड़ता है चूहों के खिलाफ़ जनांदोलन

वे बिल्ली का मुखौटा लगा

चले आते हैं परिदृश्य में


और इस तरह शुरू होता है मंच पर यक-ब-यक

चूहे और बिल्ली का दुनिया का पसंदीदा खेल ।