चेतना खड्ग का पानी है / विमल राजस्थानी
धरती को स्वर्ग बना मानव !
तू मुक्ति-मोक्ष की बात न कर
मानव से बड़ा नहीं कोई
देवता या कि वह दानव हो
ईश्वर को ईश्वर कौन कहे
धरती पर अगर न मानव हो
स्वामी अनन्त ऊर्जा का तू, नर है, तू ही नारायण है
उष्मा का आदि स्त्रोत है तू, दृग मूँद दिवस को रात न करे
से स्वर्ग नर्क की बातें तो
मन को बहलाने भर की हैं
पौरूष ही है यह परम पुरूष
धिक है न भुजा जो फड़की है
उद्यम उद्दाम जवानी है, चेतना खड्ग का पानी है
अपने हाथों, अपने पग पर भीषण कठोरा-आघात न कर
जिस दिन मानव मुस्कायेगा
यह विश्व स्वर्ग बन जायेगा
आत्मा का उत्स धरित्री पर-
थिरकेगा, अनहद गायेगा
पुरूषार्थ भाग्य को बाँधेगा, जब नर प्रत्यंख साधेगा
उर-गहृर में न छलाँग लगा, तिमिरावृत अरूण प्रभात न कर
अवनी से अम्बर मिल जाये
भूगोल-खगोल पिघल जाये
जब व्यष्टि-समष्टि विभेद हटे
सारे रहस्य खुल-खिल जायें
जब कोयल कूहू गाती है, साधना सिद्धि बन जाती है
युग-धर्म कर्म में बदल रहा, मन्त्रों का उल्कापात न कर