भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चेतनाथ धमलाका पाँच हाइकुहरु / चेतनाथ धमला

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

१- एक्लो बालक
लुगलुगी काँप्दै छ
घाम छेउमै।

२- चाल बढेर
दिन पनि रात भो
धर्ती कक्रिँदा।

३- हिमाली रङ
शिरपोष बोकेर
जिउँछ आफैँ।

४- जलकुम्भी झैँ
जराविनै उत्रनू
त्यही हो जीत।

५- हिमाली हिउँ
पग्ली झर्झ मधेस
एउटै तिर्खा।