भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चेतनाथ धमलाका पाँच हाइकुहरु / चेतनाथ धमला
Kavita Kosh से
१- एक्लो बालक
लुगलुगी काँप्दै छ
घाम छेउमै।
२- चाल बढेर
दिन पनि रात भो
धर्ती कक्रिँदा।
३- हिमाली रङ
शिरपोष बोकेर
जिउँछ आफैँ।
४- जलकुम्भी झैँ
जराविनै उत्रनू
त्यही हो जीत।
५- हिमाली हिउँ
पग्ली झर्झ मधेस
एउटै तिर्खा।