भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चेहरा / अशोक कुमार

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

भीड़ खोज रही थी एक चेहरा
भीड़ में ही छुपा था वह चेहरा

चेहरा स्वच्छ था
चमकदार

यही है
शानदार
भीड़ ने कहा था

इसके चेहरे से
उम्मीद टपकती है
नूर के साथ

तुम ही रहो
उम्मीदवार
भीड़ चिल्ला पड़ी थी

जश्न मने थे
मिठाईयाँ बँटी थीं

भीड़ की उम्मीद का चेहरा
चमक रहा था
दमक रहा था

चेहरा पहले भीड़ में पड़ा था
चेहरा अब भीड़ से बड़ा था

चेहरा भीड़ के दर्द की चिन्ता व्यक्त करता
उनके दुख हरने के वायदे करता
चेहरा भीड़ में दुखी दिखता

अकेले में मुस्काता
खिल उठता
चमकता

भीड़ उसे भीड़ में देखती
उसे उदास देख दुखी हो जाती

फिर नया उर्जस्वी चेहरा खोजती
उससे उम्मीद जगाती
फिर फिर दुखी हो जाती

भीड़ बार-बार नये चेहरे
भीड़ से बाहर लाती
बार बार उदास हो जाती

चेहरे अकल्पनीय हो चले थे
भरोसेमंद नहीं रहे थे
भीड़ के सामने उनकी चिन्ता से सराबोर चेहरे
जल्द ही अपने एकांत में चले जाते थे
ठठा कर हँसते थे।