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चेहरे (1) / हरीश बी० शर्मा

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सात समंदर-सात आसमां
सात शुत्र हैं मेरे
सभी दिशा-दरवाजे
खुले सातवें फेरे
इतने जतन सत् शोधन को
कितने हुए सवेरे
सूरज बोला
निकल अंधेरे
देखले सच्चे चेहरे।