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चेहरे शाह शरीर ग़ुलामों के / विजय किशोर मानव
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चेहरे शाह शरीर ग़ुलामों के
टुकड़े पाते लोग सलामों के
आदी हुए आदमी झुकने के
ऊंचे क़द हैं खोटे दामों के
कोटेदार बर्फ़ के भड़भूजे
भाड़ लिख दिए नाम निज़ामों के
घर के शेर मोहते बस्ती को
गहने पहने हुए लगामों के
छत पर खड़े बड़ा कहते ख़ुद को
बिकते हैं तो सिर्फ़ छदामों के
कौन परे पथराव हवेली पर
सब हैं दावेदार इनामों के