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चैत / रामनाथ पाठक 'प्रणयी'

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आइल चैत महीना, फागुन रंग उड़ा के भागल
गह-गह रात भइल कुछ रहके टह-टह उगल अँजोरिया
सुन-सुन के गुन-गुन भँवरा के मातल साँवर गोरिया,
कसमस चोली कसल, चुनरिया राँगल, झमकल छागल
आइल चैत महीना, फागुन रंग उड़ा के भागल
खिलल रात के रानी बेली, चम्पा, बिहँसल बगिया,
भरल फूल से झूल रहल महुआ के लाल फुनुगिया,
भिनसहरा के पहरा पी-पी रटे पपिहरा लागल
आइल चैत महीना, फागुन रंग उड़ा के भागल
घर के भीतर चिता सेज के सजा रहल बिरहिनियाँ,
आँगन में गिर परल पियासे आन्हर भइल हरिनियाँ
पछुआ के ललकार पिछूती बँसवारी में जागल
आइल चैत महीना, फागुन रंग उड़ा के भागल
सिहर-सिहर रोआँ रह जाता हहर-हहर के हियरा,
हाय! लहर पर लहर उठत बा जरल जवानी-दियरा,
गली-गली में चैता गावत लोग भइल बा पागल
आइल चैत महीना, फागुन रंग उड़ा के भागल