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चैत जबेॅ ऐलै / कस्तूरी झा ‘कोकिल’

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चैत जे ऐलै रामा मोॅन बौरै लेॅ
रहि-रहि देहिया में उठै हो जुआर।
आधी-आधी रतिया में कूके कोइलिया रामा
चिहुँकि-चिहुँकि उठे मनमा हमार।

पिया परदेशिया कहिके न ऐलै रामा,
पल-पल लागै रामा बड़का पहाड़,
पापी पपीहा बोले पलक्ष्ण पीऊ रामा,
सुनि-सुनि हिया में उठैहो हिलोर।

लिखि-लिखि पतिया पियबाकेॅ भेजूँ रामा
भरि-भरि अँखिया में लोर।
पिया निरमोहिया अजहूँ न ऐलै रामा,
भरल जवानी मारे रहि-रहि जोर।

चैत जे ऐलै रामा मोॅन बौरै लै,
रहि-रहि हिया में उठै हो हलोर।

-31 मार्च, 1982