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चैन मिले यदि तमको मुझ बिन / रंजना वर्मा

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जुल्म करो मत इतना मुझ पर जो खुद से ही घबरा जाऊँ
चैन मिले यदि मुझ बिन तुमको तो मैं दूर चली जाऊँगी।

मुझको नयन उठा कर देखो
मुख मत फेरो तुम लज्जित हो,
आँचल में अपमान सँजो कर
आयी हूँ पीड़ा मज्जित हो।

सुख सब वार चुकी हूँ तुम पर
आज अकिंचन जीवन मेरा,
कुछ अतीत की मधुमय यादें
बैठीं मन में किए बसेरा।

अमर रहे सुख राज्य तुम्हारा मुझे मुबारक मेरे आँसू
अपनी ही पीड़ा ज्वाला में मैं दिन-रात जली जाऊँगी।
चैन मिले यदि मुझ बिन तुमको तो मैं दूर चली जाऊँगी।

मत समझो मैं तुम्हें डिगाने
आयी हूँ जीवन के पथ से,
सँभल नहीं पाती मैं खुद ही
डगमग हुए प्राण के रथ से।

लक्ष्य रही निर्धारित करती
तुम्हें समझ कर मैं ध्रुव तारा,
जिसे जीत का सम्बल माना
पाया आज से ही हारा।

किंतु करूं मैं अब दुख इसका
इतना भी अवकाश कहाँ है
कब सोचा था यूँ अपनी साँसों से स्वयं छली जाऊँगी।
चैन मिले यदि मुझ बिन तुमको तो मैं दूर चली जाऊँगी॥