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चोरी गेलोॅ की कभी ऐतौं बौआबोॅ कतनौ / अमरेन्द्र

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चोरी गेलोॅ की कभी ऐतौं बौआबोॅ कतनौ
चोरोॅ के बस्ती में तों शोर मचाबोॅ कतनौ
हमरा लागै छै तोरोॅ माथोॅ फिरी गेलोॅ छौं
बाघ हँसतै केना केॅ? तोहें हँसाबोॅ कतनौ
अबकि हम्में जों तोरोॅ डेढी सें घुरी गेलियौ
ऐबौं की लै लेॅ कभी, तोहीं नी आबोॅ कतनौ
ई तेॅ अपने बिखोॅ सें मुर्दा बनी गेलोॅ छै
है की जीतौं? तोहें मंत्रोॅ सें जिलाबोॅ कतनौ
भैंस तेॅ भैंस छेकै बैठी केॅ पगुरैतै ही
झूमेॅ पारेॅ नै केन्हौं बीन बजाबोॅ कतनौ
साँपें छोड़लेॅ छै कहाँ लोगोॅ केॅ डँसबोॅ केन्हौं
प्रेम सें मौनी में रक्खोॅ या नचाबोॅ कतनौ
बूढ़ोॅ सुग्गौं की कहीं केकरो पोस मानै छै
सोन-पिंजरा में सीताराम पढ़ाबोॅ कतनौ
आदमी रीझै धरम-जात सें, गीतौ सें नै
तोहें गजले कैन्हें नी झूमीकेॅ गाबोॅ कतनौ

-13.6.91