भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चौखट के बाहर / शर्मिष्ठा पाण्डेय

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चौखट के बाहर तुलसी चौरे के नीचे की
गीली माटी के पिंड में
अंगूठे से दबा कर बनाये गए
कच्चे दीपक में
सहनशक्ति पक्की थी
शालिग्राम की अर्चना में डाले जाने वाले
समस्त घृत सोखता रहा दीपक और,
बाहर पड़ी-पड़ी सूखती रही तुलसी
शायद, प्रेम और विश्वास सींचने के लिए
केवल कार्तिक मास का होना ज़रूरी तो नहीं