चौखट पर अजनबी पवाइयाँ / प्रेमरंजन अनिमेष
सीढ़ियाँ चढ़ते
दरवाज़े के पास दिखतीं
जोड़ी चप्पलों की नई-सी
इस घर की नहीं
ओहो
तो मेरे पीछे
घर में
कोई आया है !
बहुत प्यारी-सी
लग रहीं
शकुन पाखियों की जोड़ी जैसी
नयी संभावनाओं से भरतीं
पवाइयाँ अपरिचित
इनमें अपने
पाँव डालने का मन कर रहा
इनसे कुछ खेल करने का
जी हो रहा
दस्तक देता हूँ
अन्दर की आहट सुनने की
कोशिश करता हूँ लगाकर कान
जैसे एक नए घर में आया हूँ
कौन होगा ?
कोई भी आया हो चलो
चलो तो भीतर !
ऊपर दरवाज़े पर लगे
किसी नामपट्ट से ज़्यादा
संकेत देतीं ये
भीतर उपस्थित मनुष्यता का
चौखट के आगे खुली
इन चप्पलों से
पता चलता
बसेरे के बसे होने भरे होने का
और मिलता
नया उल्लास
अपने घर प्रवेश का
जब तक आगम का
उछाह हो भीतर
तभी तक हम हैं कोई है घर में
और घर
है घर
जल्दी से
उतारता अपनी चप्पलें
बगल में उन नवपरिचित पवाइयों के
एक बार साथ निहार कर उन्हें
अन्दर जाते-जाते रुकता हूँ
और उस जोड़ी की एक पवाई
जल्दी से छुपा देता हूँ
कुछ देर के लिए कहीं...