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चौदहवीं किरण / द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी

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विदेशी डाकुओं ने देश का सर्वस्व लूटा है॥
निशा की कालिमा बोली
उषा की लालिमा बोली
क्षितिज की अरुणिमा बोली
‘हमारा देश लूटा है
हमारा वेष लूटा है।’
विदेशी डाकुओं ने देश का सर्वस्व लूटा है॥

विटप के वृन्त हिल डोले
विहग के वृन्द मिल बोले
कमल ने बन्द दृग खोले
काव्य के छन्द उठ बोले
‘हमारी कल्पना टूटी
हमारा स्वप्न टूटा है।’
विदेशी डाकुओं ने देश का सर्वस्व लूटा है॥

गगन की रश्मि चिल्लाई
सिन्धु की उर्मि चिल्लाई
धरा की भस्म चिल्लाई
रीति औ’ रस्म चिल्लाई
‘हमारी शान लूटी है
हमारा मान लूटा है’
विदेशी डाकुओं ने देश का सर्वस्व लूटा है॥

भूख बंगाल की बोली
रक्त बंगाल का बोला
प्यास पंजाब की बोली
रक्त पंजाब का बोला
जली सीमान्त में होली
निहत्थों पर चली गोली
खून की धार बहती है
धधकती ज्वाल कहती है
‘हमारी देह लूटी है
हमारा गेह लूटा है।’
विदेशी डाकुओं ने देश का सर्वस्व लूटा है॥

हड्डियों के खड़े ढाँचे
किसानों के, मजूरों के
बताते हैं गगनचुम्बी
महल मोटे हुजूरों के
तुम्हारी रमणियों के ओठ
की लाली बताती है
तुम्हारी रमणियों के वस्त्र
की जाली बताती है
हमारा रक्त पी-पीकर
जमी वह ओठ की लाली
हमारी हड्डियों के तार
बुनते वस्त्र की जाली
‘हमें कर नग्न लूटा है
हमें कर भग्न लूटा है।’
विदेशी डाकुओं ने देश का सर्वस्व लूटा है॥

हमारी नारियों का वह
घृणित अपमान कहता है
धधकते बालकों की आह
मूक श्मशान कहता है
लगाई आग तुमने ही
सकल संसार कहता है
खड़े तुम देखते हँसते
रहे; संसार कहता है
जलाकर दूसरों के घर
तमाशा देखते हो तुम
भस्म की ढेरियों पर न्याय-
रेखा खींचते हो तुम
देश की शक्ति को विध्वंस
करने के लिये तुमने
हजारों खण्ड कर डाले
हमारे देश के तुमने
और क्या शेष छोड़ा है
हमारा सूत्र तोड़ा है
‘हमारी लाज लूटी है
हमारा साज लूटा है।’
विदेशी डाकुओं ने देश का सर्वस्व लूटा है॥

किन्तु कण-कण हमारा है
एक तृण-तृण हमारा है
एक क्षण-क्षण हमारा है
और यह प्रण हमारा है
कि तन-मन-धन लुटा देंगे
तुम्हें निश्चय हटा देंगे
क्योंकि यह देश है अपना
और यह वेष है अपना
अमिट अरमान हैं अपने
जगे अभिमान हैं अपने
हृदय के गान हैं अपने
और ये प्राण हैं अपने
हमारे रक्त की बूँदें
करेंगी अब प्रलय-वर्षण
हमारी श्वास का झंझा
चलेगा अब सतत् सन्-सन्
और इन हड्डियों के वज्र
होंगे कड़कते भीषण
प्रलय का दृश्य तब होगा
असुर-दल नष्ट तब होगा
हमारा अभ्युदय होगा
सुनहरी किरण फूटेगी
धरा धन-धन्य लूटेगी
असुर पर दैव रूठा है
कि उसका भाग्य फूटा है
विदेशी डाकुओं ने देश का सर्वस्व लूटा है॥
(स्वतंत्रता प्राप्ति के पूर्व)