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छंद 28 / शृंगारलतिकासौरभ / द्विज

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दुर्मिला सवैया
(व्यंग्य से वसंत को आशीर्वाद देना)

मिलि माधवी आदिक फूल के ब्याज, बिनोद-लवा बरसायौ करैं।
रचि नाचि लतागन तानि बितान, सबै बिधि चित्त-चुरायौ करैं॥
‘द्विजदेव’ जू देखि अनौखी प्रभा, अलि-चारन कीरति गायौ करैं।
चिरजीवौ बसन्त सदाँ ‘द्विजदेव’, प्रसूनन की झरि लायौ करैं॥

भावार्थ: हे महाराज ऋतुराज! आप सदा चिरजीवी रहें और आप पर माधवी आदि समस्त वन-वेलियाँ फूलों के झरने के मिष आनंद का ‘लावा’ बरसाया करें; योंही वृक्षों के वितान तानकर लताएँ अनेक सुहावने नृत्य दिखा आपके चित्त को मोहित किया करें। ऐसे ही आपकी अनूठी प्रभा की विरुदावली भ्रमर चारण अपनी गुंजार के मिष गाया करें और विहंग-वृंद तथा वनदेवता गण, आप पर पुष्प वर्षा सदा किया करें।