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छंद 49 / शृंगारलतिकासौरभ / द्विज

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दोहा
(कवि की स्वयं-प्रति उक्ति-वर्णन)

या बिधि बहु-लीला रचैं, हरि-राधा ब्रज माह।
ताहि बरनि ‘द्विजदेव’ तुम, किन मैंटौ दुख-दाह॥

भावार्थ: इसी प्रकार की अनेक लीलाएँ भगवान् श्री रासेश्वरी के संग व्रजमंडल में और भी करते हैं। हे द्विजदेव कवि! तुम उनका वर्णन कर अपने उर-अंतर की दाह क्यों नहीं मिटाते।