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छत पर कपड़े / स्वप्निल श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
छत पर कपड़े सूख रहे हैं
छत पर लाल स्कर्ट में खड़ी है नन्ही लड़की
नन्ही लड़की नन्हा-सा सूर्य है छत पर
वह धीमे-धीमे मुस्कराती है
गाती है मादक गीत गुलाबी धूप के लिए
छत पर तनी हुई है अलगनी
जिसपर सूख रहे हैं कपड़े
ये कपड़े सूखकर धोबी के घर जाएँगे
धोबी इन्हें इस्तरी करेगा
कपड़े सुरक्षित रख दिए जाएँगे सन्दूक में या हैंगर पर
छत की खाली अलगनी पर बैठेगी चिड़िया
वह अपने घोंसले की चिन्ता करेगी
अलगनी पर बनाए नहीं जा सकते घोंसले
जैसे घोंसले में रखे नहीं जा सकते गर्म कपड़े
चिड़िया घोंसले के लिए जगह खोजेगी इधर-उधर
फिर फुर्र से उड़ जाएगी चिड़िया
अलगनी सितार के तार की तरह काँपती रहेगी देर तक