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छतरी : दो शिशु गीत / गिरीश पंकज

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एक

बारिश से टकराती छतरी,
इसीलिए तो भाती छतरी ।

देख बरसता पानी फौरन,
बिना कहे खुल जाती छतरी ।

फटी पुरानी जैसी भी हो,
काम बहुत है आती छतरी ।

बरसे जब पानी, पापा को
दफ़्तर तक पहुँचाती छतरी ।।

दो

ये जो अपना छाता है जी,
बड़े काम में आता है जी ।

कड़ी धूप हो या हो बारिश,
सबको यही बचाता है जी ।