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छांह / नवनीत पाण्डे

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अपनी धरती छोड़
उन्मुक्त आकाश में उड़ता, बौराता
निकला था बीज
अपनी ज़मीन तलाशने, पलने, फ़लने
स्वजाति-धर्म-गुण सम्पन्न
एक विशाल पेड़ देख
उतर गया बीच राह उसकी छांह
एक नए विश्वास और उमंग से
पेड़ पोमाया-हंसा
बुदबुदाया-
अच्छा फ़ंसा