भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

छापता है पग-चिह्न / ओम पुरोहित ‘कागद’

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सांझ है
भूख है
प्यास है
फिर भी गांव व्यस्त है
सिर पर ऊंच कर घर
डाल रहा है उंचाला
छापता है पग-चिह्न
जो
मिट ही जाएंगे कल भोर में
नहीं चाहता
कोई चले इन पर
मगर
भयभीत है;
खोज ही लेंगे कल वे
ऐसे ही अकाल में
जैसे खोज लिए हैं आज
उसने
अपने बडेरों के पग-चिह्न ।