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छाया भी अब चुभने लगी / राज हीरामन
Kavita Kosh से
दरखत पेड़ की छाया भी
अब सूइयों जैसे
चुभने लगी है
इसीलिए कल से
चिलचिलाती धूप में
आ खड़ा हुआ हूँ ।
बड़े-बड़े वृक्षों की प्रवृत्ति
बहुत ही खराब होती है
जहाँ तक उस की छाया जाती है
वहाँ तक कुछ जमता ही नहीं ।