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छिपा नहीं / विमल कुमार
Kavita Kosh से
पेड़ का रंग अब हरा नहीं है
आसमान का रंग अब नीला नहीं है
पानी का रंग अब उजला नहीं है
आदमी का रंग किसी से छिपा नहीं है