भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

छियांसठ / प्रमोद कुमार शर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बठै तो हाथी, घोड़ा, पालकी
-सै हुसी
जठै बैकुंठ है सबदां रो
पछै म्हांनै कांई कमी है
पण म्हारी जीभ पर कायी क्यूं जमी है
अवस कोई
-भै हुसी
बठै तो हाथी, घोड़ा, पालकी
-सै हुसी।