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छुट्टी का घंटा बजते ही / केदारनाथ अग्रवाल
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छुट्टी का घन्टा बजते ही स्कूलों से
निकल-निकल आते हैं जीते-जागते बच्चे
हँसते-गाते चल देते हैं पथ पर ऎसे
जैसे भास्वर भाव वही हों कविताओं के
बन्द क़िताबों से बाहर छन्दों से निकले
देश-काल में व्याप रही है जिनकी गरिमा ।
मैं निहारता हूँ उनको फिर-फिर अपने को,
और भूल जाता हूँ अपनी क्षीण आयु को !