भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

छुपे सारे सितारे क्यों / कैलाश झा 'किंकर'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

छुपे सारे सितारे क्यों
बिछुड़ते हैं हमारे क्यों।

तेरे बदरंग जीवन को
नहीं मिलते सहारे क्यों।

मुहब्बत से जो ग़ाफिल हैं
उसे कोई पुकारे क्यों।

सजी जिनकी नहीं दुनिया
उसे कोई निहारे क्यों।

मेरा कश्मीर था जन्नत
मिटे दिलकश नजारे क्यों।

मुसलसल तैरते हो तुम
नहीं मिलते किनारे क्यों।