भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
छूक-छूक चलती रेल / शकुंतला कालरा
Kavita Kosh से
भागे गाड़ी, रेल अगाडी,
छूट गए हैं पेड़।
छूक-छूक चलती रेल।
छूटी नदियाँ, छूटे हैं तट,
छूटी सीपी, रेत।
छूक-छूक चलती रेल।
छुटे गन्ने, छूटी सरसों,
छूटी सड़कें मेंड़।
छूक-छूक चलती रेल।
सुन्दर बाग-बगीचे छुटे,
छूट गई सब बेल।
छूक-छूक चलती रेल।
छूटे बन के पंछी सारे,
खेल रहे जो खेल।
छूक-छूक चलती रेल।
छूट गए सब संगी-साथी,
होगा कब फिर मेल।
छूक-छूक चलती रेल।