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छूट गया है कोई अपना / हरिवंश प्रभात
Kavita Kosh से
छूट गया है कोई अपना, साथ लगाने वाले,
रुक गया है कोई अपना, उसे मनाने वाले।
मेरी कविता प्रेम करो तो मुझसे प्रेम होगा,
प्यार मुहब्बत की बातें, हम आज वाले।
ठहरा हुआ नहीं हूँ मैं, काश तुम्हें यह मालूम,
मधुमास दिलों का चला न जाये राग गा लें।
जीवन में सार्थकता देना, कवि के लिये
एक प्यास की ख़ातिर हम एक नदी बह ले।
सालगिरह सब माना रहे हैं, अपने
हम भी तो अब सातों जन्म की गाँठ बना लें।
प्रकृति ने तो ख़ूब संवारा, अपने
नैनों के हम चित्रकार तो, चित्र बना लें।