भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
छोटा-सा बीज / बालस्वरूप राही
Kavita Kosh से
					
										
					
					बीज एक छोटा-सा बोया, 
कितना बड़ा पेड़ उग आया, 
हरी पट्टियों, फूल, टहनियों 
ने कर दी आँगन में छाया। 
छोटा बहुत बीज, पर उस में 
जाने कितने भेद समाए, 
सोच-सोच कर हम चकराए, 
लेकिन फिर भी समझ न पाए।
	
	