भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

छोटा बच्चा रोता है / मुकेश जैन

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

छोटा बच्चा रोता है
उसको भूख लगी है
घंटों चढ़ी पतीली
कब उतरेगी
चूल्हे की न-आगी भी
शान्त हो चुकी कब की
अम्मा, मुन्ने को क्यो भरमाती हो।
 
अम्मा कहती
आ जाने दो उसका बाबा
वह शायद कुछ गेहूँ लाए
सुबह जब वह निकला था
सट्टे पर बीड़ी देने
मैने उसको जता दिया था
घर में नहीं है इक दाना गेहूँ,
 
वह आया नशे में धुत्त
गाली बकता-
साली इत्ती-सी बीड़ी बनाती
मेरी पूरी भी दारू नहीं आती
  
पिटती अम्मा
अपना भाग्य कोसा करती
फिर, आधी रात तक
उसकी उँगलियाँ सूपे पर चलती रहतीं

बच्चा रोता
पानी पी कर सो जाता है।


रचनाकाल : 16 अप्रेल 1988