भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

छोटी सी बात / प्रमोद कुमार शर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

भाई कै‘वै
मकान इण नक्सै मुजब बणांवाला।
बै‘न सोचै:
कै बीं रै ब्याव मांय
किस्यौक डिजायन हुवैलौ गै‘णा रौ।
मां बड़बड़ावै -
"भला नीं है पड़ौसी।"
पिता गिणै हर टैम
इन्कम टैक्स रा आंकड़ा
घर रो नौकर
हांसै म्हां सगळा पर
"ऐ लोग जीवै क्यूं है?"