भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
छोड़ो यार / गोबिन्द प्रसाद
Kavita Kosh से
उसने कहा:
सुनाओ वह कविता
कौन-सी
कहा:
वही कविता ’नौकरी’
अच्छा;नौकरी
अभी ढ़ूँढ रहा हूँ
अचानक सन्नाटे की लहर काँप उठी
फिर उसने कहा:
मिल गयी नौकरी
छोड़ो यार...
कविता की बात करो!