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छोरी: दो / मदन गोपाल लढ़ा

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छोरी रै मांयनै
चालतो रेवै एक जुध
हर घड़ी
हर बगत
अर छोरी
आंख्यां में सपनां टांग्यां
जूझती रेवै सांच सूं
एक नूंवैं आभै री खोज में।