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छोरी (दोय) / इरशाद अज़ीज़
Kavita Kosh से
कांई?
चिड़कली?
जिण री पांख्यां कतर
चौभींतै में कैद हुवण सारू
छोड देवै
बा नीं उड सकै
आपरै ऊपरलै आभै मांय
कद तांई।
सुण छोरी!
थूं चिड़कली नीं
दुरगा बण
का पछै बणा
रणचंडी रो रूप
अर उतार फेंक
थनैं बाळतै ईं तावड़ै नैं
जिको ओढ राख्यो है थूं
जुगां-जुगां सूं।