भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
छोलतू / विनोद विट्ठल
Kavita Kosh से
(तीन सौ की आबादी का हिमाचल का वह छोटा-सा गाँव जहाँ मैं रहता हूँ — सतलुज किनारे)
(एक)
यहाँ नहीं आते हैं कोई अख़बार
न ये जाता है अख़बार तक
यहीं आकर पता चलती है
कितनी अच्छी होती है अख़बार से दूरी !
(दो)
जीते हैं जैसे मोटे
अपने वज़न के साथ
पहाड़ी पहाड़ के साथ !
(तीन)
कितने अकेले होते हैं पहाड़
ऊँचाई अकेला कर देती है !
(चार)
यहाँ लोग उगाते हैं सेब
ताकि गाल लाल हो सकें
डाक्टरों, वक़ीलों, नेताओं के
इन्हीं की याददाश्त के लिए अखरोट उगाते
ये ख़ुद भूल जाते हैं अखरोट के फ़ायदे !