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जंगल की आग / अम्बिका दत्त
Kavita Kosh से
जो जंगल में से गुजरना चाहते है
घनघोर जंगल में से
उन्हें झाडियों से नहीं डरना चाहिए
और न ही परवाह करनी चाहिए
पगडण्डियों की
जंगलों में से गुजरते हुए
‘जंगल की आग’ भी देखनी पड़ती है
जंगल की आग में
सभी रास्ते, पगडण्डियां
असहाय हो
धुएँ से घुटने लगते है
धू-धू करके जलने लगती हैं
सभी, छोटी बड़ी, अच्छी बुरी झाड़ियाँ
जंगल, में से गुजरने वालों को
जंगल की आग जरूर देखनी चाहिए
जंगल में आग लगाने वाले का पता
आज तक कोई नहीं लगा सका
लोग तो यहाँ तक कहते है
यह आग ! अपने आप लगती है
सच ! बड़ी तकलीफ होती है
जब अपने पाँवों के नीचे की जमीन सुलगती है
और आग लगाने वाला
ना मालूम होता है।