भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जग रो लेखो (शीर्षक) / कुंदन माली
Kavita Kosh से
सतजुगी आस री
छतरी
माथा पे ताण्या
आलस री
नाव में
जग वैतरणी
पार करवा वाला ने
कुण नीं जाणै ?
सरग रखवालि़या
रै माथै
ध्यान लगावा सूं
पण कांई
नीं बियो
काईं नीं
वेणो है
सोलह आना
खरी बात
जो खुद नै
पिछाणै!