भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जगहें - 1 / अदनान कफ़ील दरवेश
Kavita Kosh से
माँ कहती थी —
"...जगहें बोतल की तरह होती हैं
वो भरतीं हैं
और ख़ाली भी होती रहती हैं"
माँ ये भी कहती थी —
"...जगहें कभी पूरी नहीं भरतीं
और न ही कभी पूरी रिक्त होती हैं
हम थोड़ी मशक्कत करके
थोड़ी और जगह बनाते हैं...."
मैंने भी
अपने प्रेम के लिए
थोड़ी जगह बनाई थी
लेकिन अब सिर्फ़ जगह बची है
प्रेम नहीं
अब प्रेम
उस जगह के खाली होने
और भरने के बीच का
एकान्त है.....
(रचनाकाल: 2015)