भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जड़ : तीन / ओम पुरोहित ‘कागद’
Kavita Kosh से
रूंख जीव है
जींवतो जीव
जावै नीं कठैई
सांस पण लेवै
मिनख रै दाईं
विग्यान बतावै!
रूंख जीव है तो
रूंख री धड़ है
ऊंडी पड़ी जड़
पान छाई पेडी
मुंडो है फगत
हठीले रूंख रो
मुंडो देख्यां
धड़ नै भी अटल
साम्भणी पड़ैला!