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जड़े जानती हैं / रति सक्सेना
Kavita Kosh से
जड़े जानती हैं कि
वजूद उनका ही है
जिनके हिस्से में
रोशनी है
रोशनी उनकी है जो
बिना किसी परवाह
पी रहे हैं गटागट
धूप और छाँह
उंगलियों के रेशे रेशे से
मिट्टी को थामे
सोचती रह जाती है वह
पीठ पर चढ़े
तने के बारे में
कोटर के बारे में
पखेरुओं के बारे में
अंधमुंदी आँखों से देखती है
टहनियों को, उन पर लदी पत्तियों को
तभी
कैंचुऍ गुदगुदाने लागाते हैं
सँपोले कुदकियाँ भर
घेर लेते हैँ
किस्से सुनाने लगाती हैँ चींटियाँ
लम्बी यात्राओं के बारे में
इक्कट्ठे हो जाते हैं वे तमाम
जिनके हिस्से में बस अँधेरा है
जड़े जान जातीं हैं
सबसे बड़ा सुख
रोशनी नहीं है