भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जथारथ (3) / हरीश बी० शर्मा
Kavita Kosh से
चायै बायां रा सारा-बारा
या बहूवां रो हुणियारा,
तीजै दिन झोड़ हुवै है
भाई-भाई लड़ै है
जठै दो बरतण हुसी
अबेसकर बाजसी
आ बात
जथारथ कैवे है।