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जनतंत्र-आस्था / महेन्द्र भटनागर

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जनतंत्र के उद्घोष से गुंजित दिशाएँ !


आज जन-जन अंग शासन का,

बढ़ गया है मोल जीवन का,

स्वाधीनता के प्रति समर्पित भावनाएँ !


अब नहीं तम सर उठाएगा,

ज्याति से नभ जगमगाएगा,

उद्देश्य-प्रेरित दृढ़ हमारी धारणाएँ ।


मूक होगी रागिनी दुख की,

मूर्त होगी कामना सुख की,

अब दूर होंगी हर तरह की विषमताएँ !