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जनाज़ा रुका हुआ है / रफ़ीक सूरज
Kavita Kosh से
वे आए
जबरन उन्होंने मुझसे कुछ कविताएँ
छीन लीं
और उनकी मस्जिद बना दी
और वे भी आए
डर दिखाकर वे भी मेरी बची हुई कविताएँ
लूटकर ले गए
और उनका मन्दिर बना दिया
मेरी पूर्वानुमति की किसी को भी
ज़रूरत महसूस नहीं होती
धन्यवाद देना तो दूर ही रहा!
मेरी कविताओं को विवादग्रस्त घोषित कर दिया गया है
फिलहाल वे सशस्त्र पहरे में
मातम मना रही हैं
मुझे मेरी कविताओं से मिलने नहीं दिया जाता
दीदार तक करने की इजाज़त नहीं
मेरी भोली-भाली कविताएँ
आपके ऐसे बर्ताव से मेरी कविताएँ ढह जाएँगी, बेचारी...
मेरा जनाज़ा कब से रुका हुआ है
मेरे लिए तयशुदा क़ब्र के निशाँ के लिए
क्योंकि
बचा नहीं है
कविता का एक भी पत्थर....
मराठी से हिन्दी में अनुवाद : भारतभूषण तिवारी