जन्म वासर के घट में
नाना तीर्थे का पुण्य तीर्थ वारि
किया है आहरण, इसका मुझे स्मरण है।
एक दिन गया था चीन देश में,
अपरिचित थे वो, उन्होने
ललाट पर कर दिया चिह्न अंकित
‘तुम परिचित हो हमारे’ कहके यह।
अलग जा गिरा था कहीं, न जाने कब, पराया छद्यमेश;
तभी तो दिखाई दिया अन्तर का मानव नित्य।
अचिन्तनीय परिचय ने
आनन्द का बाँध मानो खोल दिया।
धारण किया चीनी नाम, पहन लिया चीनी वेश
समझ ली यह बात मने में-
जहाँ भी मिल जाते बन्धु, वहीं जवजन्म होता।
प्राणों में लाती है वह अपूर्वता।
विदेशी पुष्पोद्यान में खिलते हैं परिचित फूल-
विदेशी है नाम उनके, विदेश में है जन्मभूमि,
आत्मा के आनन्द क्षेत्र में उनकी आत्मीयता
पाती है अभ्यर्थना बिना किसी बाधा के।