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जब आतुर हो प्राण पुकारें / रंजना वर्मा

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बुझी हुई इस दीपावलि का प्रथम प्रदीप जला जाना।
जब आतुर हो प्राण पुकारें मेरे प्रियतम आ जाना॥

देखो तो उपवन की कलियाँ
मुरझायी हैं सोयी हैं,
थोड़ी देर हुई पीड़ा इन
कलियों में आ रोई है।

हैं उदास ये फूल ज़रा इनमें मुस्कान खिला जाना।
अधरों की सूखी पाँखों में मधुरिम हास सजा जाना।
जब आतुर हो प्राण पुकारें
मेरे प्रियतम आ जाना॥

आस लता के टूटे मोती
देखो नभ में बिखरे हैं,
चंदा के आँसू से धुल कर
नीरव तम कण निखरे हैं

विकल पड़ी जीवन वीणा के सोये तार जगा जाना।
वीराने की वादी में कलरवमय गान सुना जाना॥
जब आतुर हो प्राण पुकारें
मेरे प्रियतम आ जाना॥