भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जब कभी फूट के रोये होंगे / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
जब कभी फूट के रोये होंगे
अश्क़ दामन ने सँजोये होंगे
चाँदनी रात भर नहीं सोयी
ओस में फूल डुबोये होंगे
हैं अगर खार मिले किस्मत से
उसने काँटे ही तो बोये होंगे
कोई आहट नहीं सुनी हम ने
ख़्वाब में तेरे ही खोये होंगे
दर्द उलझा हुआ है जुल्फों में
तेरे अहसास पिरोये होंगे
है गुनहगार हो गये बादल
पर परिंदों के भिगोये होंगे
घूम कर चाँद देख लेता है
लोग आराम से सोये होंगे