जब तक तुम साँपों को / हरिवंश प्रभात
जब तक तुम साँपों को दूध पिलाओगे,
आज़ादी का मतलब समझ न पाओगे।
ईमानदार का पल-पल रोज़ मरण देखा
सरेआम अनब्याही का चीरहरण देखा,
अब भी मौन का बीज अगर बुन जाओगे
सच कहता गूँगे संतान ही पाओगे।
उम्मीदों का ढहता रोज़ हिमालय क्यों
भोग के चाहने वाले हैं गरिमामय क्यों,
भेड़िये को कुर्सी पर अगर बिठाओगे
निर्धन को फिर न्याय कहाँ दे पाओगे।
विकृतियों का कैक्टस पेड़ विशाल हुआ
जंगल जो मंगल था अब विकराल हुआ,
तुम खेतों में गर बंदूक उपजाओगे
सही जानों बस उसी से अंत हो जाआगे।
डूब चुका गणतंत्र महाघोटालों में
लुट चुकी द्रोपदी कपट की चालों में,
रावण-कंस की पूजा गर जारी रहती
कैसे तुम भटके को राह दिखाओगे?
ऊँचा उठने को यह स्वर्ग तुम्हारा है
मिलकर चलने को यह वक्त तुम्हारा है,
गर तुम घर में बैठ रहोगे डरकर जो
नील गगन पर ध्वज कैसे फहराओगे।
आपस में जो भेद-भाव है त्यागो जी
हौसला कर बुलंद नींद से जागो भी,
जब तक ना मेहनत को पूजा समझोगे
कैसे विश्व के आसन वतन बिठाओगे?