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जब तक नैना खुले हुए हैं / शिवम खेरवार

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जब तक नैना खुले हुए हैं,
प्रणय पंथ परिणीत लिखूँगा।
अदिते! तुम पर गीत लिखूँगा।

जाने कब तक साँस चलेगी,
यह धड़कन कब रुक जाएगी,
जीवन के उपरांत श्यामले,
रूह गीत नभ में गाएगी,

प्रेम अमर करते सावन में,
निशिते! तुम पर गीत लिखूँगा।

जब-जब तुम को चोट लगेगी,
दिल मेरा तब विचलित होगा,
प्राण! मुस्कुराओगी जब; तब,
मन का पटल प्रफुल्लित होगा,

जीवन की पछुआ, पुरवा में,
कविते! तुम पर गीत लिखूँगा।

जीवन का यह चक्र नियत है,
ज़्यादा लंबा नहीं चलेगा,
जितना नेह समर्पण होगा,
जीवन उतना अधिक फलेगा,

यादों में बस प्यार समेटे,
शुचिते! तुम पर गीत लिखूँगा।